जूनागढ़ दी. 13 जून 2011, हनीफ खोखर,
पहोच गई, पहेले तो रेस्क्यू टीम ने कुवे का जायजा लिया क्यों के साठ फिट गहेरे इस कुवे में बीस फुट तक पानी भरा हुवा था इस लिए तेंदुवे को बेहोशी का इंजेक्सन देना खतरों से खली नहीं था,
इस लिए बिना टेंगुलाइज तेंदुवे को कुवे से बहार निकलने का फैसला लय गया और फिर सुरु हुवा ओप्रेसन रेस्क्यू. वन विभाग के रेंज फोरेस्टर दीपक पंड्या ने बताया की इस तेंदुवे को पहेले इस तेंदुवे को सक्करबाग़ जू की अनिमल अस्पताल में ले जाया जायेगा, वहा तेंदुवे की पूरी जाँच होगी और उनके बाद आज ही फिर से गिरनार सेंचुरी में छोड़ दिया जायेगा,
रेस्क्यू टीम ने पहेले तो एक मुर्गी मंगवाई और पिंजड़े से मुर्गी को बाँधा गया और फिर चार रस्सी का सहारा लेकर पिंजड़े को कुवे में उतरा गया तेंदुवा जहा पर बता था उस मचान के बरोबर सामने ही पिंजड़े को रखा गया और फिर पिंजड़े का दरवाजा खोला गया, मगर तेंदुवा भी होशियार था वोह ऐसे नहीं मानने वाला था, मगर थोड़ी देर के बाद पिंजड़े के अन्दर बंधी मुर्गी को पकड़ने के लिए धीरे धीरे तेंदुवा पिंजड़े में घुसा और फिर योजना के मुताबिक पिंजड़े का दरवाजा बंध करदिया गया मगर फिर एक समस्या थी पिंजड़े के दरवाजे का ताला अगर नहीं लगाया गया तो तेंदुवा छलांग लगाकर कुवेमे गिर सकता था या बहार निकते समय भी पिंजड़ा खोल कर भाग सकता था, इस लिए रेस्क्यू टीम का एक जवान हिम्मत जुटाकर कुवे में उतरा मगर कुवे में इन्सान को देखकर तेंदुवे ने भी पिंजड़े में हड़कं मचा दिया था मगर रेस्क्यू टी के जवान ताला बांध करने में कामियाब हो गया और पिंजड़े के दरवाजे को ताला लगा दिया और फिर धीरे धीरे पिंजड़ा बहार निकला गया और तेंदुवे को सीधा सक्करबाग़ लेजाया गया वहा तेंदुवे की मेडिकल जाँच होगी और फिर शाम को इस तेंदुवे को गिरनार के जंगल में आजाद छोड़ दिया गया